राहुल गांधी का चुनाव आयोग पर हमला: “EC और BJP में है पार्टनरशिप”

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

बिहार की गर्म सियासत के बीच ‘वोटर अधिकार यात्रा’ पर निकले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अररिया से चुनाव आयोग पर जमकर निशाना साधा।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग का रवैया निष्पक्ष नहीं, बल्कि साझेदाराना हो गया है – और वो भी BJP के साथ

“इलेक्शन कमीशन, इलेक्शन कमिश्नर और बीजेपी के बीच में पार्टनरशिप है।” – राहुल गांधी

एक जैसे बयान, लेकिन ‘अलग-अलग’ रियायतें?

राहुल गांधी का आरोप है कि उन्होंने जब SIR (Special Intensive Revision) पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की शिकायत की, तो उनसे तुरंत शपथ पत्र (Affidavit) मांग लिया गया।

लेकिन कुछ दिनों बाद अनुराग ठाकुर ने भी ठीक वही बात प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोहराई – और उनसे आज तक कोई एफिडेविट नहीं मांगा गया।

“हम दोनों ने एक ही बात कही, लेकिन मुझे नोटिस और अनुराग जी को ‘नमस्ते’?” – राहुल गांधी, थोड़ा व्यंग्य, थोड़ा व्यथा

चुनाव आयोग की सफाई: “कानून सबके लिए समान है (थोड़ा लंबा, लेकिन समान)”

चुनाव आयोग ने राहुल के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए साफ किया कि:

  • यदि आप उस विधानसभा क्षेत्र के मतदाता नहीं हैं,

  • और किसी के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं,

  • तो कानूनन शपथ पत्र देना अनिवार्य है।

मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने स्पष्ट कहा:

“ये नियम नया नहीं, पुराना है। और सब पर समान रूप से लागू होता है – फिर चाहे वो गांधी हों या ठाकुर।”

SIR बना ‘Systematic Institutional Robbery’?

राहुल गांधी ने तो एक नया फुलफॉर्म ही निकाल दिया:
SIR = Systematic Institutional Robbery

उन्होंने आरोप लगाया कि बिहार में लाखों नाम वोटर लिस्ट से गायब कर दिए गए, खासतौर पर विपक्षी मतदाताओं के।
बीजेपी चुप है, विपक्ष शोर कर रहा है – और चुनाव आयोग ‘शपथ पत्र मांगने’ में व्यस्त है।

डेमोक्रेसी या डेमो-क्राइसिस? जनता के मन में उठते सवाल

इस पूरे मामले ने लोकतंत्र की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा कर दिया है
जब दोनों पक्ष एक जैसी बात कहें और कार्रवाई सिर्फ एक पर हो, तो जनता पूछेगी ही – “क्या आपका ‘तटस्थ’ अब ‘तरफा’ हो गया है?”

आरोपों की आंधी में चुनाव आयोग की छवि डगमगाई?

राहुल गांधी ने एक बार फिर सियासी बहस का केंद्र बिंदु बदल दिया है। अब मुद्दा सिर्फ वोटर लिस्ट नहीं, चुनाव आयोग की निष्पक्षता बन गया है

EC कहता है – “हम सबको एक जैसा मानते हैं।”
राहुल कहते हैं – “आप एक को नोटिस, दूसरे को नोटबुक तक नहीं देते!”

अब देखना ये है कि इस आरोप-प्रत्यारोप की लड़ाई में लोकतंत्र की साख बचती है या सिर्फ बहसें चलती रहेंगी।

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